राजस्थान के जालौर जिले में स्थित सुंधा माता का मंदिर (Sundha Mata Temple) अपनी ऐतिहासिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक महत्ता के कारण प्रसिद्ध है। यह मंदिर जालौर जिले की भीनमाल तहसील में, जसवंतपुरा से 12 किलोमीटर दूर, दांतलावास गाँव के पास स्थित सुंधा पर्वत के शिखर पर स्थित है। इसे संस्कृत साहित्य में सौगन्धिक पर्वत, सुगन्धाद्रि, और सुगन्धगिरि जैसे नामों से भी जाना जाता है। यहां पर स्थित चामुंडा माता की प्रतिमा को स्थानीय लोग सुंधा माता के नाम से जानते हैं और इन्हें पूरे क्षेत्र की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है।
मंदिर की स्थापना और पौराणिक मान्यताएँ
सुंधा माता का मंदिर (History Of Sundha Mata Temple) एक प्राचीन गुफा में स्थित है। यह मंदिर पौराणिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ है, जिसमें देवी सती और भगवान शिव की कहानी प्रमुख है। मान्यता है कि जब राजा दक्ष के यज्ञ के विध्वंस के बाद भगवान शिव ने सती के शव को उठाकर तांडव नृत्य किया, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को टुकड़ों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए। माना जाता है कि सुंधा पर्वत पर सती का सिर गिरा, इसलिए सुंधा माता को अघटेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है ‘धड़ रहित देवी’। यहाँ केवल देवी का सिर ही पूजा जाता है।
मंदिर का स्थापत्य और गुफा
सुंधा माता का मंदिर (Sundha Mata Temple) सुंधा पर्वत की एक प्राचीन गुफा में स्थित है। मंदिर का स्थापत्य अद्भुत और प्राचीन भारतीय कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर परिसर में प्रवेश करने के लिए एक विशाल और कलात्मक प्रवेश द्वार बना हुआ है। मुख्य गुफा तक पहुंचने के लिए पक्की सीढ़ियाँ बनी हुई हैं, जो मंदिर तक पहुँचने को सुगम बनाती हैं। गुफा के अंदर चामुंडा माता की भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित है, जो महिषासुर मर्दिनी के रूप में प्रसिद्ध हैं। देवी की यह प्रतिमा बहुत ही सजीव लगती है, जिसमें माता के हाथ में खड्ग और त्रिशूल धारण किए हुए हैं।
सुंधा माता के अवतरण की कथा
सुंधा माता से जुड़ी एक और जनश्रुति है जो इस स्थान की महत्ता को और बढ़ाती है। इस कथा के अनुसार, एक बार बकासुर नामक राक्षस ने धरती पर अत्याचार मचाया हुआ था। उसकी अत्याचार से परेशान होकर चामुंडा देवी ने अपनी सात शक्तियों के साथ यहां अवतार लिया और बकासुर का वध किया। चामुंडा देवी के साथ आईं सात शक्तियों की मूर्तियां आज भी मंदिर में प्रतिष्ठित हैं। ये शक्तियां ऐन्द्री, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही, ब्रह्माणी, और शाम्भवी के रूप में जानी जाती हैं।
शक्तियों की मूर्तियाँ
मंदिर के अंदर चामुंडा माता के साथ सात और शक्तियों की मूर्तियाँ प्रतिष्ठापित हैं, जो देवी के शक्ति रूप को दर्शाती हैं। ये सात मातृ शक्तियाँ ऐन्द्री, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही, ब्रह्माणी, और शाम्भवी के नाम से जानी जाती हैं। इन शक्तियों का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है और इन्हें देवी के विभिन्न रूपों में पूजा जाता है।
अन्य प्रतिमाएँ और कलात्मक उत्कृष्टता
सुंधा माता मंदिर (Sundha Mata Temple) परिसर में अनेक अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं। इनमें प्रमुख रूप से ब्रह्मा, शिव-पार्वती, स्थानक विष्णु, और शेषशायी विष्णु की प्रतिमाएँ हैं। ये सभी प्रतिमाएँ बारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के आस-पास की उत्कृष्ट कला का प्रतिनिधित्व करती हैं। मंदिर में एक दुर्लभ वीणाधर शिव की प्रतिमा भी है, जिसमें शिव एक महिष के ऊपर विराजमान हैं। इस प्रतिमा में शिव के चारों ओर प्रभामंडल है, और वे वीणा धारण किए हुए हैं। यह प्रतिमा अद्वितीय और अत्यंत सौम्य है।
भूर्भुवः स्वेश्वर महादेव मंदिर
सुंधा माता मंदिर (Sundha Mata Temple) के परिसर में ही भूर्भुवः स्वेश्वर महादेव का भी मंदिर स्थित है। इस मंदिर में शिवलिंग स्थापित है, जिसे भूर्भुवः स्वेश्वर महादेव के नाम से पूजा जाता है। यह मंदिर परिसर का प्रथम भाग है और यहाँ आने वाले श्रद्धालु सबसे पहले इस शिवलिंग की पूजा-अर्चना करते हैं।
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धार्मिक महत्त्व और कुलदेवी का स्थान
सुंधा माता को जालौर के राजवंश की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है। जालौर के राजा चाचिगदेव और उनके पूर्वजों ने इस मंदिर में देवी की पूजा की थी। शिलालेखों में उल्लेख मिलता है कि चाचिगदेव के पूर्वजों ने यहाँ मण्डप का निर्माण करवाया था। मंदिर में स्थित शिलालेख बताते हैं कि इस स्थान पर देवी की पूजा प्राचीन काल से की जा रही है। अनेक समाजों के विभिन्न गोत्रों में सुंधा माता को कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है।
मेले और धार्मिक आयोजन
सुंधा माता का मंदिर (Sundha Mata Temple) एक प्रमुख तीर्थ स्थल है और यहाँ प्रतिवर्ष बड़े मेले लगते हैं। वर्ष में तीन बार – वैशाख, भाद्रपद, और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में यहाँ मेला लगता है। इन मेलों में प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु देवी के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि यहाँ आकर देवी के दर्शन करने से उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। मंदिर में प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं, परंतु मेलों के समय यहाँ हजारों की संख्या में भक्तों की भीड़ होती है ।
मंदिर की प्राकृतिक सुंदरता
सुंधा माता का पवित्र तीर्थ स्थल सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। मंदिर पर पहुंचने के लिए एक विशाल प्रवेश द्वार बना हुआ है, जहाँ से पहाड़ी पर चढ़ने के लिए पक्की सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। मंदिर के मार्ग में पहाड़ी से गिरता हुआ झरना यात्रियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होता है। यह झरना तीर्थ यात्रियों में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार करता है। प्राकृतिक सुंदरता से घिरा यह स्थान यात्रियों को मन की शांति और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।
कला और इतिहास
मंदिर के सभामंडप के बाहर संगमरमर से बनी कुछ अन्य देव प्रतिमाएँ भी प्रतिष्ठापित हैं, जो बारहवीं और तेरहवीं शताब्दी की कला की परिचायक हैं। इनमें गंगा-यमुना की प्रतिमाएँ बहुत सजीव और कलात्मक हैं। यह मंदिर भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो यहाँ के लोगों की धार्मिक आस्था का प्रतीक है।
सुंधा माता का मंदिर (Sundha Mata Temple) केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक महत्त्व को भी दर्शाता है। यहाँ की प्राचीन मूर्तिकला, धार्मिक मान्यताएँ, और प्राकृतिक सौंदर्य सभी को आकर्षित करते हैं। यह स्थान न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी आस्था और भक्ति का केंद्र है। सुंधा माता का यह पवित्र तीर्थ स्थल भारतीय संस्कृति, इतिहास, और कला का अनमोल खजाना है, जो आज भी लोगों के बीच अपनी महत्ता बनाए हुए है।