माउंट आबू का इतिहास | History Of Mount Abu

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माउंट आबू का इतिहास बहुत ख़ास है ऐसा कहा जाता है की माउंट आबू का पहाड़ एक ब्रह्म खाई के अन्दर समाया हुआ नंदी वर्धन पर्वत है जिसका सिर्फ नाक के ऊपर का भाग ही बहार है बाकि पूरा खाई के अन्दर समा गया है !

Gaumukh

बुजुर्गो से सुनी कहानी के अनुसार एक समय की बात है की गुरु वशिष्ठ मुनी के पास कामधेनु की पुत्री नंदिनी गाय थी जो जंगल में चरते हुए इस ब्रह्म खाई में गिर गई थी, संध्या होने के पश्चात भी नंदिनी आश्रम नही पहुची तो वशिष्ठ मुनी नंदिनी को ढूंढते हुए ब्रह्म खाई के पास पहुचे और देखा की नंदिनी खाई में फसी हुई है ! वशिष्ठ मुनी ने नंदिनी को बाहर निकालने के लिए सरस्वती नदी से सहायता मांगी सरस्वती नदी ने खाई को पानी से भर दिया और नंदिनी पानी में तैरते हुए बाहर आ गई ! तब से गुरु वशिष्ठ मुनी के आश्रम में अभी भी सरस्वती नदी का पानी आते रहता है !

अब वशिष्ठ मुनी ने इस ब्रह्म खाई को हमेशा के लिए भरने का सोचा यह खाई हमेशा के लिए सरदर्द रहेगा, उन्होंने सबसे पहले अरावली पर्वत को इस खाई को भरने के लिए कहा तब अरावली पर्वत ने मना कर दिया की वह इस खाई में डूब जायेगा ! तब वशिष्ठ मुनी में नाराज होकर श्राप दे दिया की जा तेरा कोई अस्तित्व नही रहेगा और तू खंड खंड में रहेगा ! तब से अरावली पर्वत खंड खंड में है !

फिर वशिष्ठ मुनी हिमालय पर्वत के पास गए और खाई को भरने के लिए कहा, हिमालय पर्वत ने अपने पुत्र नंदी वर्धन पर्वत को आदेश दिया उस ब्रह्म खाई को भरने के लिए ! नंदी वर्धन पर्वत ने वशिष्ठ मुनी से वरदान माँगा और कहा की में इस खाई को भरने के लिए में तैयार हु पर मेरे इस पर्वत में सारे देवी देवताओ का वास हो और इस पर्वत में जड़ी बूटियों का खज़ाना हो और में इस खाई में न डूबू ! गुरु वशिष्ठ मुनी ने प्रसन्न होकर वरदान दे दिया ! नंदी वर्धन पर्वत एक विशाल अर्बुद नाम के सर्प के फन पर बैठकर ब्रह्मखाई में गया !

जब नंदी वर्धन पर्वत ब्रह्मखाई को भरते नाक तक अंदर डूब गया तब वशिष्ठ मुनी से गुहार लगाई हे मुनि श्रेष्ठ में डूब रहा हु तब वशिष्ठ मुनी ने भोनेनाथ से प्रार्थना की और भोलेनाथ ने अपने पैर के अंगूठे से अर्बुद सर्प और नंदी पर्वत को सहारा दिया तब से भोलेनाथ को अचलेश्वर महादेव से जाना जाने लगा ! अचलेश्वर महादेव मंदिर माउंट आबू के अचलगढ़ में स्थित है जहा पर भोलेनाथ के अंगूठे को पूजा जाता है और जल चढ़ाया जाता है चढ़ाया हुआ जल आज भी उसी ब्रह्म खाई (पाताल ) में जाता है , माउंट आबू पर्वत को इसलिए अर्बुदांचल पर्वत भी कहा जाता है ! ऐसा कहा जाता है की कभी कभी अर्बुद सर्प अपने फन को हिलाता है जब माउंट आबू मे भूकंप जैसे एहसास होता है !

गुरु वशिष्ठ मुनी का आश्रम गौगुख घने जंगले में स्थित है जो आज भी साधू संतो की पसंदीदा जगह है ! कई श्रद्धालु दर्शन करने यहा आते है ! गौमुख जाने के लिए लगभग 700 सीढ़िया निचे उतरनी पड़ती है आस पास घना जंगल है और आस पास भालू भी बहुत है !

आबू के ऐसे कई अनसुने रहस्य है जो इंसान के समझ से परे ! जय आबुराज

माउंट आबू के दार्शनिक जानकारी के लिए यहा पढ़े

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