अंबाजी मंदिर गुजरात के बनासकांठा जिले में स्थित है माँ अंबाजी का मंदिर विश्वविख्यात तीर्थ स्थल है। यह मंदिर शक्ति की देवी माँ अंबा को समर्पित है। मंदिर की विशिष्टता यह है कि यहाँ माँ अंबे की मूर्ति नहीं है, बल्कि श्री यंत्र की पूजा की जाती है। यह श्री यंत्र माँ अंबा का प्रतीक माना जाता है। अंबाजी मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है, जो देवी सती के अंगों के गिरने के स्थानों से जुड़ा हुआ है। यह मंदिर भारत के हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र है, जहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

गब्बर पहाड़ी का महत्व
अंबाजी मंदिर से 5 किलोमीटर दूर स्थित गब्बर की पहाड़ी भी धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह पहाड़ी माँ अंबे का प्रमुख निवास स्थान मानी जाती है, जहां माँ की अखंड ज्योत प्रज्वलित रहती है। अंबाजी मंदिर के साथ-साथ गब्बर की पहाड़ी पर भी श्रद्धालु विशेष आस्था रखते हैं और यहाँ पर दर्शन करने के लिए आते हैं। यहाँ का वातावरण बेहद आध्यात्मिक और शांति से परिपूर्ण है, जहाँ भक्त जन प्रार्थना और ध्यान करते हैं।

Ambaji Shaktipith History | अंबाजी शक्तिपीठ का इतिहास
अंबाजी मंदिर की सबसे विशेष बात यह है कि यहाँ देवी माँ की प्रतिमा नहीं है, बल्कि श्री यंत्र की पूजा की जाती है। श्री यंत्र माँ अंबा की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इसके दर्शन से भक्तों को माँ का आशीर्वाद प्राप्त होता है और वे अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए यहाँ आते हैं।
आरासुरी अंबाजी मंदिर का इतिहास
ऐसा कहा जाता है कि अंबाजी मंदिर का मूल मंदिर राजस्थान के सिरोही जिले के आरासणा गांव मे स्थित है। दाता के महाराजा माँ अंबे के परम भक्त थे और वे हर पूर्णिमा को माँ अंबे के दर्शन करने माँ आरासुरी अंबाजी मंदिर गाँव आरासणा आया करते थे।

एक दिन दाता के महाराज देवी माँ से प्रार्थना करते हुए बोले, हे माँ, कृपया आप मेरे साथ मेरे दाता के राजमहल पधारें। मैं आपकी भक्ति से धन्य होना चाहता हूँ। माँ अंबे ने महाराज की भक्ति से प्रसन्न होकर कहा, हे राजन, मैं तेरे साथ राज महल तक चलूँगी, परंतु मेरी एक शर्त है। महाराज ने आदरपूर्वक कहा, हे माँ, आपकी सारी शर्तें मुझे मंजूर हैं। तब माँ ने कहा, हे राजन, तुम आगे-आगे चलोगे और मैं तुम्हारे पीछे-पीछे आऊंगी, पर तुम्हें पीछे मुड़कर नहीं देखना है। जब तक तुम्हारा राज महल नहीं आ जाता।
महाराज ने माँ से पूछा, माँ, मुझे कैसे पता चलेगा कि आप मेरे पीछे पीछे आ रही हो ? माँ ने उत्तर दिया, मेरे पैरों की पायल की आवाज छम-छम आती रहेगी। जब तक यह आवाज सुनाई देती रहे, समझ लेना कि मैं तुम्हारे पीछे आ रही हु। महाराज ने विनम्रता से कहा, ठीक है माँ, मैं आपकी आज्ञा का पालन करूंगा।
महाराज आगे-आगे चलने लगे और माँ उनके पीछे-पीछे। जब महाराज गब्बर की पहाड़ी तक पहुंचे, अचानक उन्हें माँ की पायल की आवाज सुनाई देना बंद हो गई। वे चिंतित हुए और पीछे मुड़कर देखा कि माँ आ रही हैं या नहीं। उसी क्षण माँ अंबे प्रकट हुईं और बोलीं, हे राजन, मेरे दिए हुए वचन के अनुसार मैं केवल यहाँ तक ही तुम्हारे साथ आ सकती हूँ। अब मैं आगे नहीं आ सकती, मेरा निवास गब्बर की पहाड़ी पर होगा।
यह सुनकर महाराज की आँखों में आँसू आ गए। उन्होंने माँ से विनती की, माँ, मुझे आपकी भक्ति चाहिए। मैं आपके बिना अधूरा हूँ। माँ ने महाराज को आशीर्वाद दिया और कहा, हे राजन, तुम्हारा नाम जग में अमर होगा। तुम्हारी भक्ति सदैव अडिग रहेगी। जो भी सच्चे मन से मेरी भक्ति करेगा, उसका कल्याण होगा और उसे जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होगी। इस प्रकार माँ अंबे ने दाता के महाराज को आशीर्वाद दिया और उनके साथ अपनी उपस्थिति का आभास सदैव बनाए रखा। यह कथा भक्ति, समर्पण और विश्वास की महिमा का अद्भुत उदाहरण है, जिसमें सच्चे भक्त को माँ अंबे का आशीर्वाद और अनुग्रह मिलता है।
भाद्रवी पूर्णिमा का मेला
अंबाजी मंदिर में हर वर्ष भाद्रवी पूर्णिमा के अवसर पर एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला विशेष रूप से माँ अंबा के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण आयोजन है, जिसमें लाखों श्रद्धालु दूर-दूर से पैदल संघों के साथ आते हैं। वे अपने साथ ध्वज और नारियल लेकर माँ के दर्शन करने आते हैं। भाद्रवी पूर्णिमा के मेले का माहौल भक्तिमय होता है, जिसमें श्रद्धालु देवी माँ की आराधना और पूजन करते हैं। इस समय मंदिर और उसके आसपास के क्षेत्रों में विशेष सजावट और आयोजन होते हैं। इस मेले में न केवल स्थानीय लोग, बल्कि पूरे भारत से लोग बड़ी संख्या में आते हैं।
नवरात्रि का आयोजन
नवरात्रि के दौरान अंबाजी मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं। इस दौरान माँ अंबा की आराधना के साथ-साथ गरबा नृत्य का भी आयोजन किया जाता है। अंबाजी मंदिर के प्रांगण, जिसे चाचर चौक कहा जाता है, में हर साल नवरात्रि के नौ दिनों तक गरबा का आयोजन होता है। यहाँ पर भक्तजन गरबे के माध्यम से माँ अंबा की आराधना करते हैं। गरबा नृत्य गुजरात की परंपरा का हिस्सा है, जो नवरात्रि में विशेष रूप से किया जाता है। इस दौरान मंदिर का वातावरण उत्साह और श्रद्धा से भर जाता है। हजारों लोग इस आयोजन में भाग लेते हैं और माँ के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा प्रकट करते हैं।
मंदिर का समय
अंबाजी मंदिर में पूजा और दर्शन के लिए समय का विशेष ध्यान रखा जाता है। मंदिर में आरती और दर्शन के समय इस प्रकार हैं:
• सुबह की आरती: 07:30 से 08:00
• सुबह के दर्शन: 08:00 से 11:30
• दोपहर की आरती: 12:00 से 12:30
• दोपहर के दर्शन: 12:30 से 04:30
• संध्या की आरती: 07:00 से 07:30
• संध्या के दर्शन: 07:30 से 09:00
अंबाजी मंदिर कैसे पहुँचें
अंबाजी मंदिर तक पहुँचने के लिए कई साधन उपलब्ध हैं। यहाँ पहुँचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन आबूरोड है, जो लगभग 22.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा पालनपुर रेलवे स्टेशन भी मंदिर के निकट स्थित है, जो लगभग 59 किलोमीटर दूर है। इन दोनों रेलवे स्टेशनों से अंबाजी मंदिर तक पहुँचने के लिए आसानी से टैक्सी, बस या अन्य साधन उपलब्ध होते हैं।
मंदिर तक सड़क मार्ग से भी अच्छी कनेक्टिविटी है, जिससे देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु आसानी से यहाँ पहुँच सकते हैं। इसके अलावा, यहाँ हवाई मार्ग से भी जाया जा सकता है, और निकटतम हवाई अड्डा अहमदाबाद या उदयपुर है, जहाँ से सड़क मार्ग द्वारा अंबाजी तक पहुँच सकते हैं।