माउंट आबू को क्यों कहते हैं आबूराज?
माउंट आबू को आबूराज इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसे पर्वतों का राजा माना गया है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है –
गुरु वशिष्ठ ने ब्रह्मखाई को भरने के लिए पर्वतों के राजा हिमालय से सहायता मांगी। हिमालय ने अपने पुत्र नंदी वर्धन पर्वत को इस कार्य के लिए भेजा। नंदी वर्धन अर्बुद नामक विशाल सर्प पर सवार होकर खाई को भरने गया, लेकिन खाई इतनी गहरी थी कि नंदी वर्धन उसमें डूबने लगा। जब नंदी वर्धन डूबने लगा, तो उसने गुरु वशिष्ठ से सहायता की गुहार लगाई। वशिष्ठ मुनि ने भगवान शिव से प्रार्थना की, तब भगवान शिव ने अपने पैर के अंगूठे से अर्बुद सर्प और नंदी वर्धन पर्वत को सहारा दिया और उन्हें डूबने से बचा लिया।
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नंदी वर्धन का वरदान:
खाई में समाने से पहले नंदी वर्धन ने गुरु वशिष्ठ से वरदान मांगा कि –
• आबू पर्वत में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास हो।
• यहां जड़ी-बूटियों का भंडार हमेशा बना रहे।
गुरु वशिष्ठ ने नंदी वर्धन को यह वरदान दिया। चूंकि नंदी वर्धन पर्वत हिमालय का पुत्र था और पर्वतों का राजा माना जाता था, इसलिए इस क्षेत्र को “आबूराज” कहा जाने लगा।
माउंट आबू का पुराना नाम
माउंट आबू का प्राचीन नाम ‘अर्बुदांचल’ (अर्बुद पर्वत) था। इसे ‘अर्बुदगिरी’, ‘अर्बुदारण्य’, ‘अर्बुदाचल’ और आबुराज के नाम से भी जाना जाता था। अर्बुदांचल नाम का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों, पुराणों और वेदों में मिलता है। स्कंद पुराण, महाभारत और रामायण में भी इस स्थान का उल्लेख मिलता है!
आबुराज में मास मदिरा बंद हो राष्ट्रिय महाकाल सेना आबुराज की मांग
आबुराज हमारी धार्मिक धरोहर है और यहा पर मास मदिरा बंद हो इसलिए राष्ट्रिय महाकाल सेना आबुराज ने अपना विरोध प्रदर्शन किया है ! इस पवित्र स्थल का नाम जल्द ही माउंट आबू से आबुराज किया जाए इसका ज्ञापन जिल्ला कलेक्टर उपखंड पिण्डवाडा सिरोही को दिया है ! ऐसा नही होने पर बहुत बड़ा जन आन्दोलन होगा ऐसा उन्होंने कहा है !
आबूराज परिक्रमा का महत्त्व
आबुराज की पैदल परिकर्मा का भी ख़ास महत्त्व है ! सदियों से यहा के लोग हर वर्ष आबू की पैदल परिकर्मा करते है ! ऐसा माना जता है की आबू की परिकर्मा करने से चारो तीर्थ धाम की यात्रा के बराबर है ! और आबू के सभी साधू संत आबू की पैदल परिकर्मा करते है उनके साथ भक्तो का बहुत बड़ा झुण्ड भी उनके साथ भक्ति भाव से भजन करते नाचते हुए आबू की परिक्रमा करते है ! आबू की परिकर्मा पैदल 7 दिन की होती है, आबू परिकर्मा जून से शुरू हो जाती है !
माउंट आबू से जुड़े अन्य रोचक तथ्य
अ. अचलेश्वर महादेव मंदिर:
• माउंट आबू में स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
• इस मंदिर में भगवान शिव के अंगूठे का पूजन किया जाता है और यह स्थल शिवभक्तों के लिए विशेष आस्था का केंद्र है।
ब. नक्की झील की कहानी:
• माउंट आबू की प्रसिद्ध नक्की झील को लेकर भी एक पौराणिक कथा प्रचलित है।
• कहा जाता है कि देवताओं ने अपने नाखूनों से इस झील का निर्माण किया था, इसलिए इसे ‘नक्की झील’ कहा जाता है।
भगवान दत्तात्रेय और माउंट आबू का संबंध
माउंट आबू का धार्मिक महत्व केवल अरवुद नाग की कथा तक सीमित नहीं है। इसे भगवान दत्तात्रेय की तपस्थली भी माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान दत्तात्रेय ने यहां कई वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। आज भी माउंट आबू में स्थित गुरु शिखर भगवान दत्तात्रेय को समर्पित है और इसे उनके तप का प्रतीक माना जाता है।
गुरु शिखर:
• गुरु शिखर माउंट आबू का सर्वोच्च शिखर है, जिसकी ऊंचाई 1,722 मीटर है।
• यह स्थल भगवान दत्तात्रेय को समर्पित है, जिन्होंने यहां तपस्या की थी।
• इस शिखर पर भगवान दत्तात्रेय का प्राचीन मंदिर स्थित है, जहां भक्तजन दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं।
अर्बुद पर्वत का धार्मिक महत्व
माउंट आबू को सिर्फ एक प्राकृतिक पर्यटन स्थल नहीं माना जाता, बल्कि इसका धार्मिक महत्व भी उतना ही गहरा है। अर्बुदांचल का उल्लेख स्कंद पुराण, महाभारत और पद्म पुराण में मिलता है।
अर्बुदांचल को एक ऐसा स्थान बताया गया है, जहां ऋषि-मुनियों ने तपस्या की थी।
यहां भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा की उपासना की जाती थी।
यह क्षेत्र तीर्थ स्थलों का केंद्र माना गया है।
अर्बुद पर्वत को ऋषि वशिष्ठ की तपोभूमि कहा गया है।
यहीं पर वशिष्ठ ऋषि ने अपनी दिव्य गाय कामधेनु को सुरक्षित रखा था।
माउंट आबू का जैन धर्म से संबंध
माउंट आबू का संबंध जैन धर्म से भी गहरा है। यह स्थान जैन धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत पवित्र है।
अ. दिलवाड़ा जैन मंदिर:
• माउंट आबू में स्थित दिलवाड़ा जैन मंदिर जैन धर्म की अद्भुत वास्तुकला और भव्यता का प्रतीक है।
• इन मंदिरों का निर्माण 11वीं और 13वीं शताब्दी में हुआ था।
• भगवान आदिनाथ, नेमिनाथ, और पार्श्वनाथ को समर्पित ये मंदिर संगमरमर की उत्कृष्ट नक्काशी और भव्यता के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं।
ब. जैन तीर्थंकरों का प्रवास:
• ऐसा कहा जाता है कि जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ने भी यहां तपस्या की थी।
• माउंट आबू को जैन धर्म के अनुयायियों के लिए मोक्षभूमि माना जाता है।
माउंट आबू नामकरण कैसे हुआ?
माउंट आबू का नामकरण अंग्रेजों के शासनकाल में हुआ। जब अंग्रेज भारत आए, तो उन्होंने अर्बुद पर्वत को माउंट आबू नाम दिया। माउंट का अर्थ है पहाड़ और आबू अर्बुद का अपभ्रंश रूप है। इस तरह ‘अर्बुदांचल’ कालांतर में माउंट आबू के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
माउंट आबू का ऐतिहासिक और पर्यटन महत्व
वर्तमान समय में माउंट आबू सिर्फ धार्मिक स्थलों के लिए ही नहीं, बल्कि एक शानदार पर्यटन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है।
अ. मौसम और प्राकृतिक सुंदरता:
• माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है, जहां साल भर सुहावना मौसम रहता है।
• यहां का वातावरण गर्मी में भी ठंडा और मनमोहक बना रहता है, जिससे यह पर्यटकों के लिए आदर्श स्थल बन गया है।
ब. वन्य जीव और जैव विविधता:
• माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य में कई दुर्लभ प्रजातियां पाई जाती हैं।
• यहां तेंदुए, स्लॉथ बीयर, सांभर, और विभिन्न प्रकार के पक्षी देखे जा सकते हैं।