माँ चंद्रघंटा नवरात्रि के तीसरे दिन पूजी जाने वाली देवी हैं। उनका यह स्वरूप साहस, शक्ति, और शांति का प्रतीक है। उनके मस्तक पर अर्धचंद्र का घंटे के आकार का चिह्न होता है, जिससे उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। माँ चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत दिव्य और वीरतापूर्ण है। उनकी दस भुजाएँ हैं, जिनमें वे विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं, और वे सिंह पर सवार रहती हैं, जो उनके साहस और युद्ध कौशल का प्रतीक है।
माँ चंद्रघंटा का शरीर स्वर्णिम आभा से युक्त है और वे शांति व सद्भाव की द्योतक हैं। उनके एक हाथ में त्रिशूल, कमल, गदा, और धनुष-बाण होते हैं, जबकि अन्य हाथ अभय और वर मुद्रा में होते हैं, जिससे भक्तों को भयमुक्ति और वरदान का आशीर्वाद मिलता है। उनके घंटे की ध्वनि से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है और वातावरण में शांति का संचार होता है।
माँ चंद्रघंटा की पूजा से साधक को साहस, बल, और आत्मविश्वास प्राप्त होता है। उनकी आराधना से भक्त के जीवन में आध्यात्मिक और मानसिक संतुलन आता है। माँ चंद्रघंटा का यह रूप अत्यंत सौम्य और करुणामयी है, लेकिन जब भक्तों की रक्षा की बात आती है, तो वे क्रोध में आकर शत्रुओं का विनाश कर देती हैं।
माँ चंद्रघंटा का संबंध साधक के मणिपुर चक्र से होता है, जो आत्मबल और आत्मविश्वास का केंद्र है। इस चक्र के जागृत होने से साधक जीवन की हर कठिनाई का सामना कर सकता है और आत्मिक उन्नति प्राप्त कर सकता है। उनकी उपासना से व्यक्ति के जीवन में यश, सम्मान और सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।
नवरात्रि के तृतीय दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा करने से भक्तों को शांति, समृद्धि, और साहस का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उनके भक्त जीवन में निडर होकर प्रत्येक परिस्थिति का सामना करते हैं और उनका संरक्षण सदैव बना रहता है।