नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। माँ ब्रह्मचारिणी का रूप देवी पार्वती का तपस्विनी स्वरूप है, जो तप, संयम और धैर्य की देवी मानी जाती हैं। ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या या ध्यान, और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी वह देवी हैं जो कठोर तप और साधना का आचरण करती हैं।
माँ ब्रह्मचारिणी को सफेद वस्त्रधारी, उज्ज्वल आभा से युक्त, और दोनों हाथों में कमंडल तथा माला धारण किए हुए दिखाया जाता है। उनके एक हाथ में अक्षमाला (रुद्राक्ष की माला) और दूसरे हाथ में कमंडल रहता है, जो उनकी तपस्विनी प्रकृति को दर्शाता है। उनका यह स्वरूप संयम, त्याग और अध्यात्म का प्रतीक है। माँ ब्रह्मचारिणी का चेहरा शांत और उनके व्यक्तित्व में गहन धैर्य की झलक मिलती है।
माँ ब्रह्मचारिणी की कथा के अनुसार, पिछले जन्म में देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। इसी कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। उन्होंने हज़ारों वर्षों तक तप किया, निराहार रहकर केवल फल-फूल का सेवन किया और बाद में केवल सूखे पत्तों पर जीवित रहीं। उनकी कठोर साधना से प्रसन्न होकर भगवान शिवजी ने उन्हें अर्धांगिनी के रूप में ।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा से साधक को संयम, आत्मसंयम और कर्तव्यनिष्ठा का आशीर्वाद मिलता है। यह पूजा मनुष्य के जीवन में धैर्य, दृढ़ता और आत्मबल को बढ़ाती है। माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान करने से जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति मिलती है और साधक के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
माँ ब्रह्मचारिणी का संबंध साधक के स्वाधिष्ठान चक्र से होता है, जो जीवन में भावना और रचनात्मकता का स्रोत है। इस चक्र को जागृत करने से साधक के मन में शांति और संतुलन का अनुभव होता है, और उसे अध्यात्म के उच्चतर स्तरों तक पहुँचने में सहायता मिलती है।
नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से जीवन में धैर्य, साहस और आत्मसंयम की वृद्धि होती है, जिससे साधक अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के मार्ग पर दृढ़ता से आगे बढ़ सकता है।