मां सरस्वती का यह मंदिर (Maa Saraswati Unique temple) न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह लोगों के जीवन में ज्ञान, वाणी और बुद्धि का प्रकाश फैलाने वाला स्थान भी है। यहां आकर श्रद्धालु न केवल अपनी आस्थाओं को प्रकट करते हैं, बल्कि अपने बच्चों की शिक्षा और बुद्धि से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए भी मां सरस्वती से प्रार्थना करते हैं। इस मंदिर की अनूठी परंपराएं, जैसे चांदी की जीभ और कॉपी-किताब पेंसिल का प्रसाद चढ़ाना, इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती हैं। इस मंदिर की पवित्रता और दिव्यता को महसूस करने के लिए एक बार यहां आना अत्यंत आवश्यक है।
मां सरस्वती का अनोखा मंदिर: जहां बच्चों की वाणी, बुद्धि और शिक्षा से जुड़ी समस्याओं का समाधान होता है
भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर में मंदिरों का विशेष स्थान है। यहां हर मंदिर की अपनी खास मान्यता और धारणाएं होती हैं। ऐसा ही एक अनोखा मंदिर (Maa Saraswati Unique temple) है, जो सिरोही जिले के अजारी गांव में स्थित है। यह मंदिर मार्कंडेश्वर धाम के नाम से प्रसिद्ध है और यहां मां सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। लेकिन इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह बच्चों की वाणी और बुद्धि से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए जाना जाता है। माता-पिता यहां अपने बच्चों के हकलाने, तुतलाने, मंदबुद्धि और शिक्षा में कमजोरी जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए मन्नत मांगते हैं।

मां सरस्वती का मंदिर (Maa Saraswati Unique temple) और उसकी विशेषता
सिरोही जिले के अजारी गांव में स्थित मां सरस्वती का यह मंदिर राजगुरु जाति की कुलदेवी के रूप में भी पूजित है। लेकिन यह मंदिर केवल धार्मिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यहां आने वाले श्रद्धालु अपने बच्चों की वाणी, शिक्षा और बुद्धि से संबंधित विकारों को दूर करने के लिए आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में की गई प्रार्थनाओं और मन्नतों से बच्चों की समस्याएं दूर हो जाती हैं। मन्नत पूरी होने पर लोग यहां विशेष प्रकार का प्रसाद चढ़ाते हैं – कॉपी, किताब और पेंसिल। ये प्रतीकात्मक वस्तुएं इस बात का संकेत होती हैं कि बच्चों की शिक्षा में सुधार हो रहा है। इसके अलावा, अगर किसी बच्चे की वाणी का विकार ठीक हो जाता है, तो श्रद्धालु यहां चांदी की जीभ चढ़ाते हैं। यह एक अद्वितीय परंपरा है जो अन्य किसी मंदिर में देखने को नहीं मिलती।
मंदिर की पौराणिक मान्यता (Maa Saraswati Unique temple)
इस मंदिर से जुड़ी कई धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि यहां महाकवि कालिदास ने भी साधना की थी और उन्हें यहीं से ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। महाकवि कालिदास को भारत के महानतम साहित्यकारों में से एक माना जाता है, और उनके साहित्यिक योगदान के पीछे उनकी साधना और मां सरस्वती की कृपा मानी जाती है। इसके अलावा, यह मंदिर बाल ऋषि मार्कंडेय की तपोस्थली भी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, बाल ऋषि मार्कंडेय ने इसी स्थान पर महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर यमराज से अपनी मृत्यु को हराया था। इस प्रकार, यह स्थान आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
वाणी और बुद्धि विकारों के समाधान का केंद्र
इस मंदिर (Maa Saraswati Unique temple) की सबसे खास बात यह है कि यहां बच्चों की वाणी और बुद्धि से संबंधित विकारों के समाधान के लिए विशेष प्रार्थनाएं की जाती हैं। हकलाने, तुतलाने या बोलने में कठिनाई जैसी समस्याओं से जूझ रहे बच्चों के माता-पिता यहां आकर मां सरस्वती से मन्नत मांगते हैं। यहां तक कि वे माता-पिता भी अपने बच्चों को यहां लेकर आते हैं जिनके बच्चे मंदबुद्धि होते हैं या पढ़ाई में कमजोर होते हैं। आचार्य हिम्मत रावल, जो इस मंदिर के पुरोहित हैं, बताते हैं कि इस मंदिर में वाणी विकारों और मंदबुद्धि के इलाज के लिए विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं।
मन्नत पूरी होने पर, लोग चांदी की जीभ और कॉपी-किताब पेंसिल का प्रसाद चढ़ाते हैं। चांदी की जीभ का चढ़ावा वाणी विकारों के सही होने का प्रतीक है, जबकि कॉपी-किताब का चढ़ावा शिक्षा और बुद्धि के विकास के लिए होता है। यह मंदिर इस तरह की विशिष्ट परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है और देशभर से लोग यहां अपने बच्चों की समस्याओं के समाधान के लिए आते हैं।
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महाकवि कालिदास और जैन संतों की तपोस्थली
मां सरस्वती के इस मंदिर (Maa Saraswati Unique temple) से जुड़ी एक और मान्यता है कि यह महाकवि कालिदास की तपोस्थली रही है। कालिदास, जिन्हें संस्कृत साहित्य का महानतम कवि माना जाता है, ने इसी स्थान पर मां सरस्वती की साधना की थी। माना जाता है कि यहीं से उन्हें अद्भुत साहित्यिक ज्ञान और प्रेरणा मिली थी। इसके अलावा, जैन मुनि शांतिसुरी ने भी यहां तपस्या की थी। वे मां सरस्वती के आशीर्वाद से कई भाषाओं में निपुण हो गए थे। इस प्रकार, यह मंदिर न केवल हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए, बल्कि जैन धर्म के संतों और साधकों के लिए भी एक महत्वपूर्ण साधना स्थल रहा है।
इतना ही नहीं, जैन संत आचार्य हेमचंद्र सूरी और महादेव नाथ महाराज ने भी यहां करीब 40 वर्षों तक तपस्या की थी। यह तथ्य इस मंदिर की आध्यात्मिक महत्ता को और भी बढ़ा देता है, क्योंकि यह विभिन्न धार्मिक पंथों के साधकों का केंद्र रहा है।
विद्या की देवी का आशीर्वाद और साहित्यकारों की श्रद्धा
यह मंदिर विद्या की देवी मां सरस्वती को समर्पित है, जो ज्ञान, कला और वाणी की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। ऐसा कहा जाता है कि यहां जो भी व्यक्ति सच्चे मन से मन्नत मांगता है, उसे मां सरस्वती का आशीर्वाद अवश्य मिलता है। वाणी में निखार आता है और ज्ञान की प्राप्ति होती है। यहां तक कि देश के कई प्रमुख साहित्यकार और विद्वान भी मां सरस्वती का आशीर्वाद लेने के लिए इस मंदिर में आते हैं। वे मानते हैं कि उनकी साहित्यिक प्रतिभा और ज्ञान मां सरस्वती की कृपा से ही निखरती है।
मंदिर का इतिहास और प्राचीनता
यह मंदिर (Maa Saraswati Unique temple) करीब 600 साल से भी अधिक पुराना है और रावल ब्राह्मण परिवार द्वारा इसकी पूजा-अर्चना की जाती रही है। यह मंदिर प्राचीन स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है और इसकी धार्मिक मान्यताएं आज भी लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। सिरोही जिले के लोग इस मंदिर को अपनी सांस्कृतिक धरोहर मानते हैं और यहां साल भर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है।
कैसे पहुंचे मां सरस्वती के इस दिव्य मंदिर तक
अगर आप भी इस अद्भुत और पवित्र मंदिर में दर्शन करना चाहते हैं, तो यहां पहुंचने के लिए कई विकल्प उपलब्ध हैं।
• नजदीकी रेलवे स्टेशन: पिंडवाड़ा, जो सिरोही जिले में स्थित है, इस मंदिर से मात्र 7 किलोमीटर की दूरी पर है । पिंडवाड़ा से मार्कंडेश्वर धाम अजारी के लिए जीप एवं ऑटो रिक्शा उपलब्ध है !
• पास का रेलवे स्टेशन: आबू रोड, जो इस मंदिर से करीब 60 किलोमीटर दूर है।
• नजदीकी हवाई अड्डा: उदयपुर महाराणा प्रताप हवाई अड्डा, जो यहां से 110 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
इस मंदिर की यात्रा करते समय आप राजस्थान की सुंदर प्राकृतिक दृश्यों का भी आनंद ले सकते हैं, क्योंकि सिरोही जिला अरावली पहाड़ियों के पास स्थित है और इसका सौंदर्य अनुपम है।
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